योगी अखिलेश

मनुस्मृति’ सनातन धर्म मानवजाति का प्राचीन  धर्मशास्त्र व प्रथम संविधान (स्मृति) धर्म ग्रंथ है। सन 1776 में ब्रिटिश फिलॉजिस्ट सर विलियम जोंस द्वारा मनुस्मृति को सर्व प्रथम अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। अत: अंग्रेजी मे अनुवादित होने वाला हमारा पहला संस्कृत ग्रंथ ‘मनुस्मृति’ है। मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं, जिनमें 2684 श्लोक हैं। हमारे श्रुति धर्म ग्रंथ ‘वेद’ मे लिखा है कि जो धर्म मनु जी ने कहा है वही मनुष्य कल्याण कारक है। श्री मनु जी ने कहा है कि जो मनुष्य “वेद और स्मृतियों मे कहे हुए धर्म को करता है, वह मनुष्य इस लोक मे कीर्ति को एवं परलोक मे मोक्ष को प्राप्त होता है”। सर्व प्रथम राजा मनु ने वेदों के ज्ञान को एक व्यवस्था अर्थात मनुस्मृति में ढाला था। अत: “श्रुति धर्म ग्रंथ” वेदों को कहा जाता हैं और “स्मृति धर्म ग्रंथ हमारे अन्य धर्म ग्रंथ को।

क्या सब कुछ ईश्वर पर निर्भर है?

ज्ञान का उपयोग मानव जीवन के प्रारंभ से ही ऋषि-मुनि, देव-दानव तथा मनुष्य निरंतर करते आ रहे है।  तुलसीदास जी ने रामचारित मानस मे लिखा है कि                                                                                           
“सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहहु मुनिनाथ, हानि लाभ जीवन मरन जस अपजस विधि हाथ"
राम के वनवास के बाद भरत बहुत विचलित हुए। उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा प्रभु आप तो संसार के सबसे श्रेष्ठ मुनि व महाज्ञानी हैं। आपने राम के राजतिलक का ऐसा मुहूर्त कैसे निकाल दिया कि महाराज दशरथ की मृत्यु हुई और राम वनवास गए। यह प्रश्न सुन कर वशिष्ठ मुनि ने इस दोहे का उदहारण भरत को दिया था। जिसका अर्थ है कि महर्षि ने दुखी होकर कहा- हे भरत, भाग्य बड़ा बलवान है और हानि-लाभ, जन्म-मृत्यु , प्रसिद्धि अथवा अप्रसिद्धि विधाता के नियम या कानून पर निर्भर है, प्राणी के हाथ में नहीं।
परन्तु शारीरिक और मानसिक सुख-दुख हमारे शरीर मे होने वाली क्रियाये हैं भाग्य कि लेखनी नहीं। अत: इनसे उपजने वाले कष्टों को योग के माध्यम से नष्ट किए जा सकता है।
सुख-दुख उपजे सोच से मन मे पीड़ा होय
रोग है उपजे पेट से जीवन भारी होय।
जो मानव योगी बने हो जाए वो पार

हरयुग में है योग की महिमा अपरंपार।।
योग एक ऐसा मार्ग है जिसके द्वारा कुछ भी असंभव नहीं आवश्यकता है तो सिर्फ एकाग्रता की। जो शक्ति मंत्रों तंत्रों या यंत्रों के द्वारा पाई जाती हैं वो एक निश्चित समय तक ही कार्य करती है। वहीं योगिक शक्ति इस जन्म मे ही नहीं बल्कि अन्य जन्म मे भी फलदायक है। योग विद्या भी सम्मोहन विद्या के समान एकाग्रता पर निर्भर करती है। जिस प्रकार एक सम्मोहनकर्ता के लिए, एकाग्रता का नियत अभ्यास करना आवश्यक है उसी प्रकार ही योगी को स्वयं सम्मोहन के लिए हठयोग द्वारा एकाग्रता का अटूट अभ्यास करना पड़ता है। क्यों कि 'स्वयं के द्वारा स्वयं को सम्मोहित कर लेना ही समाधि है'।
इस पृथ्वी के प्रत्येक मनुष्य मे सम्मोहन शक्ति स्वत: ही विद्यमान है। परंतु जानकारी न होने के कारण अधिकतम मनुष्य इस शक्ति से बहुत दूर है और जो इसके जानकार है वह सिर्फ धन कमाने के लिए ही इसका उपयोग कर रहे है। यह शक्ति प्रत्येक मनुष्य को ब्रह्म के द्वारा स्वत: ही दी गई है जिसे योग के माध्यम से और अधिक जाग्रत अवस्था मे ले जाया जाता है। यही सम्मोहन कि उच्च अवस्था ही समाधि कहलाती है।
यहा मै आपको इस बात का बताना उचित समझूँगा कि व्यायाम योग नहीं है। योग एक साधना है। योग मे आसन का भी विशेष महत्व है। जिस प्रकार से कुकर बिना सीटी के भाप ऊर्जा को नहीं रोक सकता उसी प्रकार बिना सही आसन के किया हुआ योग प्रकृति से अर्जित की हुई ऊर्जा को नहीं रोक सकता और योगी को असफलता हाथ लगती है। अत: आसन भी साधना का एक विशेष अंग है। मनुष्य आसन के द्वारा शरीर के विभिन्न रोगों को समाप्त कर विशेष आनन्द कि प्राप्ति सकता है।
योगी अखिलेश
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रुद्र पांडव हनुमान
पांडव वनवास काल के समय इस स्थान पर आए थे। ये एक विचित्र प्रकार का स्थान है क्यों कि पांडव यहां आनंद में नहीं आए थे। वे एक प्रकार कि हताशा मे और क्रोधित हुए यहां बैठे थे। तो यहां कि ऊर्जा आपकी की हुई कल्पना से बहुत अधिक है क्यों कि यहां पर उन्होंने अपना बहुत अधिक समय बिताया और इसी स्थान पर द्रोपदी ने श्री कृष्ण के ध्यान मुद्रा मे बैठे हुए प्रकट दर्शन किए थे और उसके बाद भी न जाने कितने हजार वर्षों तक कितने हजार ऋषि मुनियों ने यहां आकर ध्यान योग का अनुसरण किया। यहां एक अनोखी प्रणाली का रहस्य छिपा हुआ है।  जब मैने बुंदेलखंड सनातन वेद यात्रा के दौरान इस स्थान के विद्धुत चुंबकीय क्षेत्र (Electromagnetic Field) को मापा तो वह शून्य (Neutral) थी। इस प्रकार का विद्धुत चुंबकीय क्षेत्र मंगल गृह मे पाया जाता है। आज भी ये जगह वैसी ही है जैसे पहली थी। आपको कुछ जानने कि जरूरत नहीं। यह स्थान आपको शून्य कर देगा, आपके दिमाग कि विचलितता को खत्म करने मे सहायक होगा। समीप ही एक कुंड है जिसमे कमल के पुष्प खिले हुए हैं। इस कुंड का जल औसाधि युक्त है, इसे पीने से  हमारी पाचन क्रिया पुष्ट होकर भूख को बढ़ा देती है और रोगों को नष्ट करती है। जल कुंड के समीप ही द्रोपदी द्वारा स्थापित शिव स्थान है और उसी शिव मंदिर के सामने ही है यह शून्य स्थान जहां पर द्रोपदी ने श्री कृष्ण को योगी रूप मे ध्यान अवस्था मे बैठे हुए देखा था। वर्तमान मे इस स्थान पर श्री हनुमान जी कि मूर्ति स्थापित है। जिन्हे रूद्र पांडव हनुमान कहते हैं।
हम इस स्थान को सिर्फ दर्शन कि दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। हम इसके साथ ध्यान, योग या साधना को जोड़ना चाहते हैं। यदि हम अपने आपको रूपांतरित करना चाहे तो उसके लिए हमे विशेष ऊर्जा कि आवश्यकता होगी, नहीं तो ये बहुत मुस्किल होगा। यदि हमे इस प्रकार कि ऊर्जा उत्पन्न करनी हो तो उसके लिए हमे बहुत अधिक ध्यान, योग या साधना करनी पड़ेगी। परंतु इस स्थान पर वह सब प्रकृतिक रूप से रखा हुआ है। बस आपको यहां आँख बंद करके ध्यान मे बैठना भर है और इसके प्रति आपको थोड़ा ग्रहणशील होना है। यहां पर सनातन ऊर्जा आधार उपलब्ध है जो कभी खत्म होने वाला नहीं। यह ऊर्जा अक्षय है। आप यहां कुछ समय आँख बंद कर शांति से बैठने के बाद स्वयं को स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक होने से नहीं रोक पाएंगे और अध्यात्म ही सभी कष्टों से मुकती है।  

(शून्य विद्धुत चुंबकीय क्षेत्र)

 भारत के मध्य प्रदेश के ग्राम पांडाझिर जिला
छतरपुर(म प्र) मे स्थित 'मंगल गृह' कि भांति
Zero Electromagnetic Field की खोज
हठयोगी अखिलेश द्वारा ध्यान के द्वारान वर्ष 2022 मे की गई थी
दिव्य शक्ति साधक
योग एवं सम्मोहन विशेषज्ञ
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भोग ओर मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारो वर्णों के लोगों को रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। देवी भागवत, शिव पुराण, स्कन्द पुराण ( विशेषतः ब्रह्मोत्तर खण्ड ) पद्म पुराण, लिग पुराण एवं जावल्योपनिषद्‌ में इसको अत्यंत लाभदायक बताया गया है। विश्वविख्यात रसायन शास्त्री डा० ब्रिहिम जम्र ने खोज को कि रुद्राक्ष के द्वारा केसर आदि अनेक रोगों का निदान किया जा सकता है। ब्रिटेन के लेखक पाल ह्यूम ने अपनी  पुस्तक 'रुद्राक्ष' में  बताया है कि इसके प्रयोग से असम्मव से असम्भव काय॑ सम्भव किये जा सकते हैं। सम्मोहन, उच्चाटन, वशीकरण व धनामम के क्षेत्र में रुद्राक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। रुद्राक्ष द्वारा भाग्य परिवर्तन भी सम्भव है। इसके द्वारा भाग्य के मार्ग में आने वाली रुकावटों दूर की जा सकती हैं। इसके द्वारा तलाक रुकवाए जा सकते हैं, गर्भ धारण किया जा सकता है, इच्छित सन्तान  प्राप्त की जा सकती है। यह वनस्पति ऐसे अद्भ्रुत पुदूगलों का पिंड है, इसमें ऐसी  ऊर्जा शक्ति है जिससे चमत्कारी कार्य  सम्पन्न होते हैं।
1 से 5 मुख वाले रुद्राक्ष को गले मे धारण करना चाहिए 6 मुखी रुद्राक्ष दाहिने हाथ में, 7 मुखी कठ में, 8 मुखी मस्तक में, 9 मुखी हाथ में, 12 मुखी केश प्रदेश में, 14 मुखी शिखा में धारण करना चाहिए । इसके धारण करने से आरोग्य लाभ, सात्विक प्रवृत्ति का उदय, शक्ति का आविर्भाव और विघ्न का नाश होता है। रुद्राक्ष के मुखों के अनुसार फल निम्न प्रंकार से हैं
एक मुखी रुद्राक्ष
एक मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात्‌ शिव स्वरूप है। भोग व मोक्ष रूपी फल श्रदान करता है। जहां इसकी पूजा होती है, वहां से लक्ष्मी दूर नहीं जाती । उस स्थान में सारे उपद्रव नष्ट हो जाते हैँ तंथा वहां रहने वाले लोगों की सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण होती है। विधिवत इसके धारण करने से धारक के सम्पूर्ण अनिष्ट दूर होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भक्ति , मुक्ति व मन को शांति प्राप्त होती है। यह परम दिव्य, सर्व सिद्धिदायक, सवंगुण सम्पन्न व स्वयं सिद्ध है।
दो मुखी रुद्राक्ष
दो मुख वाला रुद्राक्ष अद्धंनारीश्वर का प्रतीक माना गया है। शिव भक्तों के लिए इस रुद्राक्ष को विधिवत धारण करना अधिक कल्याणकारी कहा गया है। तामसी बृत्तियों के शमन के लिए यह अधिक उपयुक्त है। चित की एकाग्रता, मानसिक शान्ति, आध्यात्मिक उन्नति, कुण्डलिनी जागरण के लिए इसका प्रयोग उपयुक्त है। गर्भवती महिलाओं को कमर या बांह पर सत से बांध देने पर गर्भावस्‍था में नौ महीने के अन्दर किसी भी प्रकार की बाधा, भय, बेहोशी, हिस्टीरिया व डरावने स्वप्न जैसे दोष नहीं होगें । साथ में एक रुद्राक्ष बिस्तर पर तकिये के नीचे एक डिबिया में रख लेना चाहिए । वशीकरण के लिए इस रुद्राक्ष का प्रयोग अचूक माना गया है।
त्रिमुखी रुद्राक्ष
तीन मुख वाला रुद्राक्ष त्रि-अग्नि का प्रतीक माना गया है। विधिवत्‌ धारण करने वाले धारक से अग्निदेव प्रसन्‍न रहते हैं। यह घन एवं विद्या की वृद्धि में सहायक है। तीन दिन के बाद आने वाला ज्वर इसको धारण करने से ठीक हो जाता है।
चतुर्मुखी रुद्राक्ष
चार मुख वाला रुद्राक्ष ब्रह्मा का प्रतीक माना गया है। यह धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। यह रुद्राक्ष बुद्धिमंद, वाक्‌-शक्ति कमजोर हो और स्मरण शक्ति क्षीण वालों के लिए यह कल्प व॒क्ष के समान है। विधिवत्‌ इसको धारण करने से शिक्षा व भेंट आदि में धारक को असाधारण सफलता प्राप्त होती है। सम्मोहन, आकर्षण व वशीकरण में भी इसका प्रयोग किया जाता है । इसे दूध में उबालकर बीस दिन तक पीने से मस्तिष्क सम्बन्धी विकार दूर होते हैं।
पंचमुखी रुद्राक्ष
पांच मुख वाला रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का प्रतीक माना गया है । यह सब कुछ करने में समर्थ है । सबको मुक्ति देने वाला तथा सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। इसके तीन दाने विधिवत्‌ धारण करने से लाभ होता है । धारक के पाप-ताप का नाशक व ॒ स्वास्थ्य रक्षक है । रात के समय इसका एक दाना नाभि के ऊपर रखकर सीधे सोते हुए एक से लेकर १०८ तक्र की गिनती करें धीरे-धीरे फिर १०८ से लेकर १ तक उल्टे गिने । फिर दाने को यथास्थान रख दे । इससे कब्ज की शिकायत दूर होती है।
षड्मुखी रुद्राक्ष
छः मुख वाला रुद्राक्ष शिव पुत्र कार्तकेय का प्रतीक माना गया है। कई विद्वान इसे गणेश का प्रतीक भी मानते हैं। ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने, कार्य में पूर्ण सफलता प्राप्त करने तथा व्यापार में अद्भुत सफलता प्राप्त करने के लिए दाहिनी बांह में धारण किया जाता है। विधिवत धारण करने वाले धारक के जीवन में मौतिक दृष्टि से कोई कमी नहीं रहती । विद्यार्थियों के लिए यह अति उत्तम है । हिस्टोरिया, मूर्छा, प्रदर आदि स्त्रियों से सम्बन्धित रोग आदि में विशेष गुणकारी होता है।
सप्तमुखी रुद्राक्ष
सात मुख वाला रुद्राक्ष अनंग स्वरूप और अनंग नाम से प्रसिद्ध है। इसके देवता सप्त मातृकाएं, एवं सप्त ऋषि माने जाते हैं । विधिवत्‌ धारण करने वाले धारक को यह यश, कीति, धन, मान व ऐश्वर्य प्रदान करता है ।
अष्टमुखी रुद्राक्ष
अष्ट मुख वाला रुद्राक्ष बटुक भैरव का प्रतीक माना गया है। असत्य भाषण का पाप नष्ट करता है। विधिवत्‌ इसको धारण करने वाले धारक का काया-कल्प के समान आयु की वृद्धि करता है।
नौमुखी रुद्राक्ष
नौ मुख वाला रुद्राक्ष, यम, भैरव तथा कपिल मुनि का प्रतीक माना गया है। नौ रूप धारण करने वाली माहेश्वरी दुर्गा इसकी अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। नवरात्रों में विधिवत धारण किया जाये तो भगवती दुर्गा उस. पर अति प्रसन्न रहती हैं। दोनों भ्रुजाओं में से किसी पर भी यह धारण किया जाता है। यह धारक की भाग्य-वृद्धि, धन-वृद्धि, पारिवारिक-सुख, सन्तान तथा मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।
दसमुखी रुद्राक्ष
दस मुख वाला रुद्राक्ष भगवान विष्णु का प्रतीक माना गया है। दरों... दिक्‌पाल इसके रक्षक माने गए हैं। विधिवत धारण करने वाले धारक के सर्व ग्रह दोष, भूत-प्रेत, पिशाचादि दोष दूर करता है। तांत्रिक क्षेत्र में इसका बहुत अधिक महत्व है। जो व्यक्ति गले में इसको धारण करता है उस' पर मारण-मोहन, अकाल-मृत्यु आदि का प्रभाव नहीं होता । दूध के साथ घिसकर तीन बार इसको चटाया जाय तो कूकर खाँसी रोग का निवारण होता है।
एकादश मुखी रुद्राक्ष
ग्यारह मुख वाला रुद्राक्ष एकादश रुद्र-प्रतिमा का प्रतीक माना गया है। कई विद्वान इन्द्र को भी इसका प्रधान देवता मानते हैं। इसे घर, पूजा गृह अथवा तिजोरी में मंगल कामना के लिए रखना लाभदायक है। यह सबको मोहित करने वाला है। स्त्रियों के लिए यह रुद्राक्ष महत्वपूर्ण है । पति की सुरक्षा, उसको दोर्घायु एवं उन्‍नति तथा &सौमाग्य प्राप्ति में उपयोगी है। जावल्योपनिषद्‌ के अनुसार इस रुद्राक्ष को अभिमंत्रित कर कोई भी स्त्री धारण करे तो उसे निश्चय ही पुत्र लाभ होता है। संक्रामक रोगों के नाश के लिए भी इस रुद्राक्ष का उपयोग किया जाता है। विधिवत धारण करने वाले व्यक्ति को सुख व विजय मिलती रहती है।
द्वादश मुखी रुद्राक्ष
बारह मुख वाला रुद्राक्ष भगवान विष्णु का प्रतीक माना गया है। बारहों आदित्य इसके देवता माने गये हैं। विधिवत धारण करने वाले धारक को सुख व रोजगार की प्राप्ति होती है।
त्रयोदश मुखी रुद्राक्ष
तेरह मुख वाला रुद्राक्ष विश्व देवों का प्रतीक माना गया है। कई विद्वान कार्तिकेय का प्रतीक एवं इन्द्र को इसका देवता मानते हैं। विधिवत्‌ इसको धारण करने वाला मनुष्य सम्पूर्ण अभीष्टों सहित सौमाग्य और मंगल लाभ करता है। मनचाहे स्त्री-पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करने की शक्ति व रासायनिक सिद्धि प्राप्त करता है।
चतुर्दश मुखी रुद्राक्ष
चोदह मुख वाला रुद्राक्ष भगवान शिव का प्रतीक माना गया है। हनुमान जी का भी स्वरूप माना जाता है। भगवान शंकर के नेत्र से इसका प्राकट्य मात्रा गया है। विधिवत इसको छल्ञाट पर धारण किया जाता है। इससे समस्त पापों का शमन होता है। आरोग्य प्रदाव करना तथा कष्टों को शांत करना इसकी विशेषता है।
मर्यादा पुरषोत्तम क्षत्रिय श्री राम
इस पृथ्वी के प्रथम मनुष्य श्री मनु हैं।  मनु के 25 वे वंशज थे महाराज अरण्य। अरण्य और रावण का जब घोर युद्ध हुआ, तब मृत्यु के समय महाराज अरण्य ने रावण को श्राप दिया कि इच्छवाकू वंश मे जन्मा राजकुमार ही तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा। उन्ही मनु के 64 वें वंश मे श्री राम का जन्म हुआ। श्री राम कि पत्नी माता सीता थी। माता सीता ही महामाया है जिनका न कभी जन्म होता है और न ही मृत्यु बल्कि सिर्फ प्रकट्य और विलुप्ति ही होती है। ये वही महामाया हैं जिन्होंने दुर्गा रूप मे महिसासुर और चंडी रूप मे शुंभ-निशुंभ का वध किया और अजपा गायत्री रूप मे प्रत्येक जीवित शरीर मे निवास करतीं हैं।
विद्वान ब्राह्मण रावण
ब्रह्मा जी के परपौत्र, पुलस्त्य ऋषि के पौत्र और विश्रवा ऋषि के पुत्र थे रावण।  शिव भक्त रावण महाविद्वान, महाप्रतापी, महापराक्रमी और वेद-शास्त्र के महाज्ञानी थे। रावण कि पत्नि मंदोदरी अप्सरा हेमा कि पुत्री थीं। मंदोदरी को महर्षि कश्‍यप के पुत्र मायासुर ने गोद‍ लिया था। मंदोदरी उन पंच कन्याओ मे से एक हैं जिनका प्रतिदिन स्मरण करने से प्राणियों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। पंच कन्याओ का जन्म कोख से नहीं बल्कि किसी तत्व द्वारा प्रकट रूप मे होता है। ये पाँच कन्याये हैं अहिल्या (ऋषि गौतम की पत्नी), द्रौपदी (पांडवों की पत्नी), तारा (वानरराज बाली की पत्नी), कुंती (पांडु की पत्नी) तथा मंदोदरी (रावण की पत्नी)। 
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श्रुति शास्त्र वेद
हनुमान बाहुक हिन्दी अर्थ  पार्ट 1, 2, 3, 4, 5
हनुमान बाहुक पार्ट 1
हनुमान बाहुक पार्ट 2
हनुमान बाहुक पार्ट 3
हनुमान बाहुक पार्ट 4
हनुमान बाहुक पार्ट 5
शिव रुद्राभिषेक
शिव तांडव स्त्रोत्र
शिव नमस्कार मंत्र
श्रीमद्बाल्मिकी रामायण महात्मय
 श्री बाल्मीकि रामायण

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महाभारत कथा एवं चक्रव्यूह गीता
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