मनुस्मृति हिन्दू धर्म मानवजाति का प्राचीन  धर्मशास्त्र व प्रथम संविधान (स्मृति) है। सन 1776 में ब्रिटिश फिलॉजिस्ट सर विलियम जोंस द्वारा मनुस्मृति को सर्व प्रथम अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। अत: हम गौरवपूर्ण कह सकते हैं कि अंग्रेजी मे अनुवादित होने वाला हमारा पहला संस्कृत ग्रंथ मनुस्मृति है। मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं जिनमें 2684 श्लोक हैं। वेद मे लिखा है कि जो धर्म मनु जी ने कहा है वही मनुष्य कल्याण कारक है। श्री मनु जी ने कहा है कि “वेद और स्मृतियों मे कहे हुए धर्म को जो मनुष्य करता है वह मनुष्य इस लोक मे कीर्ति को एवं परलोक मे मोक्ष को प्राप्त होता है“। सर्व प्रथम राजा मनु ने वेदों के ज्ञान को एक व्यवस्था अर्थात मनुस्मृति में ढाला था।श्रुति वेदों को कहते हैं और स्मृति धर्म शास्त्र को

योगसूत्र, योग दर्शन का मूल ग्रंथ है। योगसूत्र की रचना 5000 साल पहले महाऋषि पतंजलि ने की थी। विभिन्न आसनों द्वारा प्रकृति की शुद्ध वायु को हमारे शरीर के 700 बिन्दु (Pressure Point) तक पहुंचाना ही शारीरिक योग है। जिसके अंतर्गत विभिन्न आसन आते हैं। शारीरिक योग में मुख्य रूप से पतंजली के 5 सूत्र होते हैं।
यम- अर्थात संयम जैसे संयमित भोजन, निद्रा, मैथुन आदि।
नियम- पालन करना अर्थात लगातार करना अर्थात अभ्यास।
आसन- योग मुद्राएं जैसे पद्मासन, शीर्षासन, पश्चिमोत्तानासन।
प्राणायाम- प्राणायाम अर्थात स्वयं की सांसों पर नियंत्रण।
प्रत्याहार- अर्थात पांचों इंद्रियों दृश्य, सुगंध, स्वाद, श्रवण और स्पर्श पर नियंत्रण।
आपका वास्तविक गुरु आपका अनुभव है क्यों की अनुभव पर प्रश्न नहीं उठता। साधारण रूप से मनुष्य 1 मिनट मे 15 बार सांस लेता है और 24 घंटे में 21600 बार। इस सांस की गति को नियमित अभ्यास से घटाना ही मानसिक योग है एवं धीरे धीरे सांस की गति को  शून्य तक पहुंचाना ही समाधि अवस्था है। पातंजली के 6, 7, 8  सूत्र और बुद्ध के 3 सूत्र यही हैं।
धारणा- एकाग्रता अर्थात अपने अंदर की सांस को देखना।
ध्यान - सांस की गति स्वाभाविक रूप से मंद पड़ जाना।
समाधि- सांस की गति को शून्यता तक पहुंचना।
*सम्मोहन क्रिया ध्यान पर ही आधारित है।

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बावशीर नाशक गुरसकरी
स्मरण शक्ति वर्धक लोध
मृगी रोग नाशक जायफल
थाइराइड नाशक
शुगर नाशक विजयसार
मोटापा एवं चर्बी नाशक पर्सा .
पथरी नाशक पथरचटा
शारीरिक जोड़ दर्द नाशक पीपल फल
मंत्र का अर्थ है मन, तंत्र का अर्थ है तन और यंत्र का अर्थ है यन अर्थात सूर्य या ईश्वर। मंत्र और तंत्र के द्वारा यंत्र में ऊर्जा स्थापित करना ही यांत्रिक क्रिया है। यंत्र की ऊर्जा मंत्र एवं तंत्र के समान ही शक्तिशाली होती है जिसके द्वारा प्राणी की शारीरिक पीड़ा, मानसिक परेशानी, पारिवारिक कलह, शिक्षा, नौकरी, विवाह जैसी अनेक परेशानियों से निदान प्राप्त किया जा सकता है। श्री राम से लेकर श्री कृष्ण तक, महात्मा बुद्ध से लेकर महावीर तक और हजरत मुहम्मद से लेकर गुरु नानक तक सभी धर्मों में यंत्र शक्ति को विशेष महत्व दिया गया है। पूर्वकाल में किसी भी देवालय (मंदिर) का निर्माण बिना यंत्र की स्थापना के नहीं किया जाता था क्यों की जिस प्रकार से प्रत्येक प्राणी के रहने का एक निश्चित स्थान होता है उसी प्रकार से देवी देवताओ जैसी अन्य शक्तियों का भी निवास स्थान होता है। इन्हीं देव-देवी  शक्तियों को मंत्र एवं तंत्र क्रिया द्वारा भोजपत्र, ताम्रपत्र अथवा विशेष पत्र में स्थापित करना ही वास्तविकता मे यंत्र सिद्धि है और इसी यंत्र सिद्धि को ही सामान्य भाषा में प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है। कुछ प्रमुख मंदिरों मे स्थापित यंत्र हैं बालाजी मे श्री यंत्र, जगन्नाथ मंदिर मे भैरवीचक्र यंत्र, श्रीनाथ जी के मंदिर मे सुदर्शनचक्र यंत्र।
शारीरिक पीड़ा, मानसिक परेशानी, पारिवारिक कलह, शिक्षा, नौकरी, विवाह, धन, प्रसिद्धि जैसी अनेक परेशानियों से निदान के लिए यंत्र निर्माण हेतु WhatsApp करें।

प्रश्न- क्या सब कुछ ईश्वर पर निर्भर है?

ज्ञान का उपयोग मानव जीवन के प्रारंभ से ही ऋषि-मुनि, देव-दानव तथा मनुष्य निरंतर करते आ रहे है।  तुलसीदास जी ने रामचारित मानस मे लिखा है कि                                                                                           
“सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहहु मुनिनाथ, हानि लाभ जीवन मरन जस अपजस विधि हाथ"
राम के वनवास के बाद भरत बहुत विचलित हुए। उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा प्रभु आप तो संसार के सबसे श्रेष्ठ मुनि व महाज्ञानी हैं। आपने राम के राजतिलक का ऐसा मुहूर्त कैसे निकाल दिया कि महाराज दशरथ की मृत्यु हुई और राम वनवास गए। यह प्रश्न सुन कर वशिष्ठ मुनि ने इस दोहे का उदहारण भरत को दिया था। जिसका अर्थ है कि महर्षि ने दुखी होकर कहा- हे भरत, भाग्य बड़ा बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश व अपयश विधाता के नियम या कानून पर निर्भर है, प्राणी के हाथ में नहीं।
परन्तु शारीरिक और मानसिक सुख-दुख हमारे शरीर मे होने वाली क्रियाये हैं भाग्य कि लेखनी नहीं। अत: इनसे उपजने वाले कष्टों को योग के माध्यम से नष्ट किए जा सकता है।
सुख-दुख उपजे सोच से मन मे पीड़ा होय
रोग है उपजे पेट से जीवन भारी होय।
जो मानव योगी बने हो जाए वो पार

हरयुग में है भोले की महिमा अपरंपार।।
योग एक ऐसा मार्ग है जिसके द्वारा कुछ भी असंभव नहीं आवश्यकता है तो सिर्फ एकाग्रता की। जो शक्ति मंत्रों तंत्रों या यंत्रों के द्वारा पाई जाती हैं वो एक निश्चित समय तक ही कार्य करती है। वहीं योगिक शक्ति इस जन्म मे ही नहीं बल्कि अन्य जन्म मे भी फलदायक है। योग विद्या भी सम्मोहन विद्या के समान एकाग्रता पर निर्भर करती है। जिस प्रकार एक सम्मोहनकर्ता के लिए, एकाग्रता का नियत अभ्यास करना आवश्यक है उसी प्रकार ही योगी को स्वयं सम्मोहन के लिए हठयोग द्वारा एकाग्रता का अटूट अभ्यास करना पड़ता है। क्यों कि 'स्वयं के द्वारा स्वयं को सम्मोहित कर लेना ही समाधि है'।
इस पृथ्वी के प्रत्येक मनुष्य मे सम्मोहन शक्ति स्वत: ही विद्यमान है। परंतु जानकारी न होने के कारण अधिकतम मनुष्य इस शक्ति से बहुत दूर है और जो इसके जानकार है वह सिर्फ धन कमाने के लिए ही इसका उपयोग कर रहे है। यह शक्ति प्रत्येक मनुष्य को ब्रह्म के द्वारा स्वत: ही दी गई है जिसे योग के माध्यम से और अधिक जाग्रत अवस्था मे ले जाया जाता है। यही सम्मोहन कि उच्च अवस्था ही समाधि कहलाती है।
यहा मै आपको इस बात का बताना उचित समझूँगा कि व्यायाम योग नहीं है। योग एक साधना है। योग मे आसन का भी विशेष महत्व है। जिस प्रकार से कुकर बिना सीटी के भाप ऊर्जा को नहीं रोक सकता उसी प्रकार बिना सही आसन के किया हुआ योग प्रकृति से अर्जित की हुई ऊर्जा को नहीं रोक सकता और योगी को असफलता हाथ लगती है। अत: आसन भी साधना का एक विशेष अंग है। मनुष्य आसन के द्वारा शरीर के विभिन्न रोगों को समाप्त कर विशेष आनन्द कि प्राप्ति सकता है।
योगी अखिलेश

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वेद

वेद ईश्वर कि वाणी है

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रुद्र पांडव हनुमान
पांडव वनवास काल के समय इस स्थान पर आए थे। ये एक विचित्र प्रकार का स्थान है क्यों कि पांडव यहां आनंद में नहीं आए थे। वे एक प्रकार कि हताशा मे और क्रोधित हुए यहां बैठे थे। तो यहां कि ऊर्जा आपकी की हुई कल्पना से बहुत अधिक है क्यों कि यहां पर उन्होंने अपना बहुत अधिक समय बिताया और इसी स्थान पर द्रोपदी ने श्री कृष्ण के ध्यान मुद्रा मे बैठे हुए प्रकट दर्शन किए थे और उसके बाद भी न जाने कितने हजार वर्षों तक कितने हजार ऋषि मुनियों ने यहां आकर ध्यान योग का अनुसरण किया। यहां एक अनोखी प्रणाली का रहस्य छिपा हुआ है।  जब मैने बुंदेलखंड सनातन वेद यात्रा के दौरान इस स्थान के विद्धुत चुंबकीय क्षेत्र (Electromagnetic Field) को मापा तो वह शून्य (Neutral) थी। इस प्रकार का विद्धुत चुंबकीय क्षेत्र मंगल गृह मे पाया जाता है। आज भी ये जगह वैसी ही है जैसे पहली थी। आपको कुछ जानने कि जरूरत नहीं। यह स्थान आपको शून्य कर देगा, आपके दिमाग कि विचलितता को खत्म करने मे सहायक होगा। समीप ही एक कुंड है जिसमे कमल के पुष्प खिले हुए हैं। इस कुंड का जल औसाधि युक्त है, इसे पीने से  हमारी पाचन क्रिया पुष्ट होकर भूख को बढ़ा देती है और रोगों को नष्ट करती है। जल कुंड के समीप ही द्रोपदी द्वारा स्थापित शिव स्थान है और उसी शिव मंदिर के सामने ही है यह शून्य स्थान जहां पर द्रोपदी ने श्री कृष्ण को योगी रूप मे ध्यान अवस्था मे बैठे हुए देखा था। वर्तमान मे इस स्थान पर श्री हनुमान जी कि मूर्ति स्थापित है। जिन्हे रूद्र पांडव हनुमान कहते हैं।
हम इस स्थान को सिर्फ दर्शन कि दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। हम इसके साथ ध्यान, योग या साधना को जोड़ना चाहते हैं। यदि हम अपने आपको रूपांतरित करना चाहे तो उसके लिए हमे विशेष ऊर्जा कि आवश्यकता होगी, नहीं तो ये बहुत मुस्किल होगा। यदि हमे इस प्रकार कि ऊर्जा उत्पन्न करनी हो तो उसके लिए हमे बहुत अधिक ध्यान, योग या साधना करनी पड़ेगी। परंतु इस स्थान पर वह सब प्रकृतिक रूप से रखा हुआ है। बस आपको यहां आँख बंद करके ध्यान मे बैठना भर है और इसके प्रति आपको थोड़ा ग्रहणशील होना है। यहां पर सनातन ऊर्जा आधार उपलब्ध है जो कभी खत्म होने वाला नहीं। यह ऊर्जा अक्षय है। आप यहां कुछ समय आँख बंद कर शांति से बैठने के बाद स्वयं को स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक होने से नहीं रोक पाएंगे और अध्यात्म ही सभी कष्टों से मुकती है।  
 भारत के मध्य प्रदेश के मध्य स्थान ग्राम पांडाझिर जिला छतरपुर (म प्र ) 
मे स्थित है मंगल गृह कि भांति *शून्य एलेक्ट्रोमाग्नेटिक फील्ड स्थान की
खोज योगी अखिलेश द्वारा की गई है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती (१८२४-१८८३) 
आर्य समाज के संस्थापक
*** सनातन  वेद यात्रा ***
सकारात्मक विचार केंद्र इंदौर से 'रुद्र पांडव हनुमान' शून्य विद्धुत क्षेत्र ग्राम पाड़ाझिर जिला छतरपुर तक
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मर्यादा पुरषोत्तम क्षत्रिय श्री राम
इस पृथ्वी के प्रथम मनुष्य श्री मनु हैं।  मनु के 25 वे वंशज थे महाराज अरण्य। अरण्य और रावण का जब घोर युद्ध हुआ, तब मृत्यु के समय महाराज अरण्य ने रावण को श्राप दिया कि इच्छवाकू वंश मे जन्मा राजकुमार ही तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा। उन्ही मनु के 64 वें वंश मे श्री राम का जन्म हुआ। श्री राम कि पत्नी माता सीता थी। माता सीता ही महामाया है जिनका न कभी जन्म होता है और न ही मृत्यु बल्कि सिर्फ प्रकट्य और विलुप्ति ही होती है। ये वही महामाया हैं जिन्होंने दुर्गा रूप मे महिसासुर और चंडी रूप मे शुंभ-निशुंभ का वध किया और अजपा गायत्री रूप मे प्रत्येक जीवित शरीर मे निवास करतीं हैं।
विद्वान ब्राह्मण रावण
ब्रह्मा जी के परपौत्र, पुलस्त्य ऋषि के पौत्र और विश्रवा ऋषि के पुत्र थे रावण।  शिव भक्त रावण महाविद्वान, महाप्रतापी, महापराक्रमी और वेद-शास्त्र के महाज्ञानी थे। रावण कि पत्नि मंदोदरी अप्सरा हेमा कि पुत्री थीं। मंदोदरी को महर्षि कश्‍यप के पुत्र मायासुर ने गोद‍ लिया था। मंदोदरी उन पंच कन्याओ मे से एक हैं जिनका प्रतिदिन स्मरण करने से प्राणियों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। पंच कन्याओ का जन्म कोख से नहीं बल्कि किसी तत्व द्वारा प्रकट रूप मे होता है। ये पाँच कन्याये हैं अहिल्या (ऋषि गौतम की पत्नी), द्रौपदी (पांडवों की पत्नी), तारा (वानरराज बाली की पत्नी), कुंती (पांडु की पत्नी) तथा मंदोदरी (रावण की पत्नी)। 
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हनुमान बाहुक हिन्दी अर्थ पार्ट 1, 2, 3, 4, 5

हनुमान बाहुक पार्ट 1
हनुमान बाहुक पार्ट 2
हनुमान बाहुक पार्ट 3
हनुमान बाहुक पार्ट 4
हनुमान बाहुक पार्ट 5

शिव रुद्राभिषेक

शिव तांडव स्त्रोत्र

शिव नमस्कार मंत्र

श्रीमद्बाल्मिकी रामायण महात्मय

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